फिल्मी बाते

"फिल्म" ये  शब्द सुनते ही हमे दिखाई देने लगती है , चकाचौंद वाली दुनिया , फिल्मी सितारे, 
कानो मे गुंजने लगती है फिल्मी गानो की आवाज, बचपन मे माँ -पापा, या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के साथ , या दोस्तो के साथ देखी गयी फिल्मे,  वो सभी दिन हमारे आँखो के सामने यु ही सबकुछ यादे बनकर तेरने लगते है.. , ठिक वैसेही मानो जैसे बारीश के पानी मे कागज की तैरती कोई नाव.
    फिल्मो की दुनिया कूछ ओर ही होती है, कोई अच्छी फिल्म अगर थेटर मे देख ले, तो थेटर से निकलते वक्त सबको ये एहसास तो जरूर होता ही है मानो जैसे हम ही उस फिल्म का हिरो , हिरोईनवाला कोई अच्छा किरदार हो, ओर हम कई कहानीया देखकर अपने आप को कभी कभी हमारे साथ भी वैसाही हो रहा है ये मेहसूस करने लगते है, 
हम एक सच्चाई वाला जीवन तो जिते है लेकीन फिल्मी  खयालो द्वारा हमारा पिछा छुडाना किसी के भी बस मे .. नही, चाहे दुख हो या सुख , हम इस दुनियाके काफी नजदीक जुडे है, और कोई जुडे भी क्यू ना हमारी समाज का चित्रण ही तो दर्शाता है माध्यम..
फिल्मी सितारे परदे पर कैसे भी जीवन क्यो ना जिते हो , और उनके सच्चाई मे जीनेवाला जीवन भी चाहे कैसा भी हो लेकीन वो भी अपने जीवन मे काल्पनीक कहानीयोंसे वैसेही जुडे होते हे जैसे की हम. 
हमारा निजी जीवन फिल्मोंसे, गानों से, मनोरंजनात्मक चिजो से कई सालो से जुडा आ रहा है और आज भी जुडा है , ये समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
        : शलाका गाडे 

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